घृणा (moral stories in hindi)- जादुई जलपरी की कहानी (Magical story):
जादुई जलपरी की कहानी– घृणा यानी नफरत एक ऐसा ज़हर है जो, किसी भी रिश्ते में अलगाव ला सकता है| घृणा का असर द्विपक्षीय होता है जिसे, समझाने हेतु यह कहानी (moral stories in hindi) लिखी गई है| मुझे पूरी आशा है कि, यह आपके ज्ञान चक्षु खोलेगी| उमेश और विष्णु कई वर्षों से दोस्त थे| दोनों के पिता रेलवे में नौकरी करते थे| विष्णु भी अपने पिता की तरह रेलवे में नौकरी करना चाहता था इसलिए, वह रेलवे एग्जाम की तयारी कर रहा था| वहीं उमेश का पढ़ाई में बिलकुल मन नहीं लगता था इसलिए, वह विष्णु का भी मन भटकाने की कोशिश में रहता था| दरअसल, विष्णु उमेश की तुलना में, पढ़ाई में ज़्यादा होशियार था| इसी वजह से उमेश मन ही मन उससे घृणा करता था लेकिन, ऊपरी तौर पर वह, उसके दोस्त होने का दिखावा करना बख़ूबी जानता था| एक दिन उमेश विष्णु से पूछता है, “तुम सारा दिन पढ़ाई करते करते बोर नहीं होते?” विष्णु मुस्कुराते हुए कहता है कि, “यार ज़िंदगी में कुछ सार्थक लक्ष्य तक पहुँचने के लिए, मेहनत तो करनी ही पड़ेगी और फिर पढ़ाई करना मुझे बचपन से पसंद है| भला मुझे, इसमें कैसी बोरियत महसूस होगी?” लेकिन, उमेश पहले से ही बाहर घूमने की योजना बनाकर आया था इसलिए, वह विष्णु से कहता है कि, “आज मेरा जन्मदिन है और आज हमें बाहर पिकनिक पर चलना है| तुम्हारा कोई बहाना नहीं चलेगा| विष्णु अपने दोस्त को, उसके ख़ास दिन पर नाराज़ नहीं करना चाहता था इसलिए, वह बाहर चलने को मान जाता है| दोनों अपनी अपनी साईकिल से निकल पड़ते हैं|
कुछ देर बाद, वे एक नदी के किनारे पहुँचकर, अपना टेंट लगाते हैं और वहीं बैठ जाते हैं| कुछ देर बाद उमेश केक काटता है और विष्णु को खिलाता है| विष्णु भी बड़े प्यार से, अपने दोस्त को केक खिलाकर, उसके चेहरे पर लगा देता है| कुछ देर मस्ती करने के बाद, दोनों नदी में नहाने के लिए कूद पड़ते हैं| अचानक, उमेश के पैर में किसी का स्पर्श होता है जिससे, वह डर जाता है और नदी से बाहर निकलने लगता है लेकिन, उसी वक़्त एक ख़ूबसूरत जलपरी, पानी से बाहर आ जाती है| जल परी को देखते ही, दोनों की आंखें चकाचौंध हो जाती है| दहशत से पैर कांपने लगते हैं| उन्हें समझ में ही नहीं आता कि, जलपरी को देखकर उन्हें क्या प्रतिक्रिया करनी चाहिए? जलपरी दोनों के डरे हुए चेहरे देख, ज़ोर ज़ोर से हंसते हुए कहती है कि, “तुम दोनों को डरने की ज़रूरत नहीं| मैं तो, तुम्हें उपहार देने आयी हूँ|” उपहार का नाम सुनते ही, दोनों की जान में जान आ गई| उमेश लालच भरी आवाज़ से, जलपरी से उपहार के बारे में पूछता है| जलपरी नदी के अंदर से दो पत्थर निकालती है और एक एक पत्थर दोनों को देते हुए कहती है, “ये चमत्कारी पत्थर हैं और हर पत्थर केवल दो ही इच्छाएँ पूरी कर सकता है लेकिन, यह सीधे तुम्हारे लिए काम नहीं करेंगे बल्कि, एक दूसरे के लिए जो कुछ भी माँगा जाएगा, उसका आधा तुम्हें मिलेगा|” इतना कहते ही, वह पानी के अंदर वापस चली गई|
जलपरी की बात सुनकर, विष्णु को थोड़ा संदेह होता है लेकिन, उमेश की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था| वह उछलते हुए नदी से बाहर निकलकर, ख़ुशी से नाचने लगता है| कुछ देर बाद दोनों वापस अपने घर पहुँचते हैं| दोनों यह बात अपने घर के लोगों से छुपा लेते हैं| उमेश को मन ही मन लग रहा था कि, विष्णु तो पहले से ही उससे बेहतर है| वह उसके लिए क्या माँगे? वह विष्णु से कहता है, “तुम मेरे लिए बहुत सारी दौलत माँगो ताकि, उसकी आधी तुम्हें भी मिल जाए और मैं भी, तुम्हारे लिए उतनी ही दौलत मांगूंगा|” विष्णु अपने दोस्त को समझाता है| “धन दौलत तो हम बाद में भी कमा सकते हैं| हमें कुछ और चीज़ माँगना चाहिए” लेकिन, उमेश उसकी बात नहीं सुनता| मज़बूरी में विष्णु को, उमेश की बात माननी पड़ती है और विष्णु के कहते ही, उमेश के पास दौलत का ख़ज़ाना आ जाता है और शर्त के मुताबिक़, उसका आधा विष्णु को भी मिल जाता है| इतनी दौलत देखते ही, उमेश का दिमाग़ चकरा जाता है| वह लालच में आकर सोचता है कि, “मैं तो अब धनवान बन गया क्यों ना, विष्णु से उसका सब कुछ छीन लिया जाए ताकि, वह मुझसे आगे न निकल सके” और वह जलपरी के दिए हुए पत्थर से, विष्णु को पूरी तरह से अपाहिज करने की कामना करता है और अगले ही पल, विष्णु पूरी तरह अपाहिज हो जाता है लेकिन, शर्त के अनुसार उमेश के शरीर का आधा हिस्सा भी, अपाहिज हो चुका था| विष्णु अपने दोस्त का छल देखकर दुखी हो जाता है|
उसे यक़ीन ही नहीं होता कि, उसका दोस्त उससे कितनी घृणा करता था जो, उसने पत्थर से यह माँगा| उमेश को सबक़ सिखाने के लिए, विष्णु अपनी दूसरी इच्छा में उमेश की सारी दौलत छीन लेता है| दौलत जाते ही उमेश, विष्णु के सामने गिड़गिड़ाते हुए कहता है कि, “मुझसे गलती हो गई| मुझे मेरी दौलत लौटा दो” लेकिन, तीर कमान से निकल चुका था| फिर भी, उसे रोते हुए देख, विष्णु उससे कहता है कि, “मैं तुम्हें अपनी सारी दौलत दे दूँगा लेकिन, पहले तुम मुझे पूरी तरह ठीक करो| दौलत मिलने की लालच में उमेश, पत्थर से अपनी दूसरी इच्छा में, विष्णु को पूरी तरह ठीक करने को कहता है और अगले ही पल, विष्णु पूरी तरह स्वस्थ हो जाता है लेकिन, परिणामस्वरूप उमेश अभी भी, एक तिहाई शरीर से अपाहिज ही रहता है| दोनों इच्छा पूरी होते ही पत्थर अपने आप ग़ायब हो जाते हैं| तभी विष्णु वहाँ से उठकर जाने लगता है| उसे जाते देख, उमेश लंगड़ाते हुए उसके पास पहुँचता है और उससे उसके वादे के अनुसार, दौलत देने के लिए कहता है लेकिन, विष्णु उसे किनारे हटाकर, उसकी ज़िंदगी से हमेशा हमेशा के लिए दूर हो जाता है| दरअसल, उमेश के घृणा भाव ने विष्णु का दिल तोड़ दिया था| अपने दोस्त के जाते ही, उमेश को अपनी गलती का बहुत पछतावा हुआ| उमेश आज भी पश्चाताप की आग में जलते हुए, अपाहिजो की जिंदगी जी रहा है और इसी के साथ यह कहानी ख़त्म हो जाती है|